Wednesday, April 19, 2023

किसको खबर है देखता राह कब किस भेष में
चिर प्रतीक्षित कामनाएं द्वार बैठी तक रहीं।

दर्द की हैं गूंजती खामोशियां वीरानों में
ज़िंदा निशानी प्रेम की दीवार में हैं चिन रही।

थी विगत में खेलती अठखेलियां मकानों में
मृत कुमारी देह सी शमशान में है जल रही।

हौसलों की सीढ़ियां सपनों की कब्रगाह हैं
कतरा कतरा रूह भी बर्फ बन पिघल रही।

स्मृतियां गुमनाम सी लिपटी दरो दीवारों से
मुक्ति हो जिय त्राण से बैठी प्रतीक्षा कर रही।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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