Thursday, April 6, 2023

काव्य निर्झरिणी तेरा ह्रदय है प्रिये
जिसमें संगीत धड़कन से आने लगी
गीत होंठों से जब तेरे निकला यहाँ
मेरे दिल की कली मुस्कराने लगी

होंठ मखमली गुलाबी कमल हैं प्रिये
जिनसे लफ्ज़ों में खुशबू सी आने लगी
तेरे सांसों से सरगम की धारा बही
धड़कनें मेरी कविता सुनाने लगी

आसमाँ में जो छायी है काली घटा
तेरी ज़ुल्फ़ों की है वो पुरानी अदा
ज़ुल्फ़ विखराने से शबनम मोती गिरे
आँखों में गिरके वो बन गयी मयकदा

तेरी पायल जो छम-छम बजी पांव में
वादियों में है सरगम बहार आ गयी
स्नेह अनुपम तुम्हारे ह्रदय का मिला
उसकी झंकार दिल के करीब आ गयी

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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