ये हवायें महकी और निर्मल हो गई
कल तुम्हारे पांव छू के रेत चंदन हो गई
अंग_अंग पंक्तियों का भाव से परिपूर्ण
बूंद बूंद प्रेममय है तुम निरंतर बहती सविता
है शिखर तुम में समाहित घाटियां तुम में बसी
ये है मेरा विश्वास प्रियतमा तेरे सा कोई नही
तेरी सांसों को छू मेरी सांसें उपवन हो गई
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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