कविता के बारे में सबके भिन्न विचार होते है
तो मैंने भी कोशिश की,कविता क्या होती है
वो निकल पड़ी है पर्वत से,,कुछ चंचल सी कुछ निर्मल सी
सागर से मिलने की आस लिए,,वो सूखी धरा भिगोती है,,
शायद यही तो कविता होती है,,,,,,,
कभी वीररस का उन्माद लिए,कभी श्रृंगारों के सावन में
विरह गीत के बीहड़ में,वो तन्हाई में रोती है
बेचैनी के मरुस्थल में,रेतोंका तूफ़ान लिए
एक अनबुझी प्यास है,अश्कों से लबको भिगोती है
कभी दर्द भरे किसी नग्में में,कभी तन्हाई की गज़लोंमें
एक अनसुलझे से धागे में,प्रेम के मोती पिरोती है
कोसों दूर है निंदिया से,सुबह शाम का होश नहीं
वो मखमल के बिस्तर पर भी,आँखें खोले सोती है
कभी अंधेरों से घबराकर,आवाज दे बुलाती है
यादो की बाती में लिपटी,एक अमर प्रेम की ज्योती है
कोशिश तो मैंने भी की,कुछ प्रणय,बिखेरु कागज पर
रंग बिरंगे कागज़ थे,बस कलम पास नहीं होती है,
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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