चाँद सागर के मिलन का ज्वार रचता हूँ
और लहरों का मचलना साँझ का ढलना
रंग गहरे आस के भर प्यार रचता हूँ
भोर का स्वागत सदा सत्कार रजनी का
रोज़ आशा का नया उजियार रचता हूँ
हीर रांझा की कथा,महिवाल के क़िस्से
नित नए विश्वास से अभिसार रचता हूँ
कामना सब की कभी होती कहाँ पूरी
हो सके सम्भव वही आधार रचता हूँ
कोसने से रात को होता नहीं कुछ हल
एक दीपक को जला उपचार रचता हूं
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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