आओ ठहर जायें कहीं शाम के ढलते_ढलते
दूर वादी है तो थोड़ा सुकूँ भी ले लें
चांद पूनो का चलो देखेंगे हंसते_हंसते
मखमली घास के बिस्तर पे झुका थोड़ा फ़लक
चांदनी हौले से सहला गयी डरते_डरते
गुजरते वख़्त के संग कहकशाँ ने दी ये दुआ
हवा के झोंके भी जो आयें तो झुकते_झुकते
शफ़क़ की लाली ने दस्तक की है कुछ सोच समझकर
लबों पे आयी जो शबनम वहभी रुकते_रुकते
इन उजालों में दिखी है हमें वादी की झलक
मीत नग़मों की तरह पहुंचें वहाँ गाते सुनते
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment