Friday, May 26, 2023

हम बहुत दूर निकल आये हैं चलते_चलते
आओ ठहर जायें कहीं शाम के ढलते_ढलते

दूर वादी है तो थोड़ा सुकूँ भी ले लें
चांद पूनो का चलो देखेंगे हंसते_हंसते

मखमली घास के बिस्तर पे झुका थोड़ा फ़लक
चांदनी हौले से सहला गयी डरते_डरते

गुजरते वख़्त के संग कहकशाँ ने दी ये दुआ
हवा के झोंके भी जो आयें तो झुकते_झुकते

शफ़क़ की लाली ने दस्तक की है कुछ सोच समझकर
लबों पे आयी जो शबनम वहभी रुकते_रुकते

इन उजालों में दिखी है हमें वादी की झलक
मीत नग़मों की तरह पहुंचें वहाँ गाते सुनते

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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