पूजता हूं तुम्हें मन के मंदिर में मैं
मन की मंदिर की मूरत बना बैठा हूं।
काम जीवन में मेरे बहुत है मगर
प्रीत की तुझ से आदत लगा बैठा हूं।
नींद मेरी गई,याद करके तुझे
तू वहां चैन से ऐसे सोती रही।
न भी बोले मगर,मैं समझता हूं सब
बोलने की तुम्हें कुछ जरूरत नहीं।
तू है आंगन मेरी,मैं तेरे द्वार हूं
भाव से अपना आंगन सजा बैठा हूं
तारे गिन के गुजर जाएगी रात भी
बस! तुम्हें चैन की,नींद आती रहे
प्रेम इजहार करने को बेताब सब
बस!मेरा प्रेम,तेरे लिए है सदा
है यह रिश्ता नहीं इस जन्म का प्रिय
सात जन्मों की वादा,निभा बैठा हूं
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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