चलते चलते कल प्रिये तुम्हारे नयनों में
देखा था जो नैराश्य उसी से चिंतित हूं
नत नयन भंगिमा संग प्रिये चंद्रानन का
देखा अवसादित हास उसी से चिंतित हूं
साहस रखना अपने उर पर प्रस्तर रखकर
चाहे प्रतिमा हो जाना तुम उसमें दबकर
मानिनीं बनोगी ध्रुव है, पर प्रिय याद रहे
जग करे न कल उपहास उसी से चिंतित हूं
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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