Friday, June 9, 2023

पुरुष का रोना व्याकुल कर जाता है 
उस आसमान को जिसने अपना दर्द 
हंसते हंसते सौंप दिया था एक दिन बारिश को !

पुरुष का रोना हरबार ढूंढता है 
मां का आँचल प्रेमिका का काजल 
पत्नी का प्यार बहन का कांधा 
अपने तकिए का कोना!

पुरुष के रोते ही पुरुष हो जाती है 
वह स्त्री जो पोंछती है उसके आँसूं
और मर जाता है वह दर्द जो जीत कर 
मुस्कुरा रहा था उस पुरुष से !

पुरुष के रोने से टूट जाते हैं 
पितृसत्ता के पाषाण हृदय ताले
और खुल जाते हैं द्वार उन अहसासों के 
जो उसे उसके भी इंसान होने का अहसास दिलाते हैं !

पुरुष के रोते ही पृथ्वी आकाश से 
अपनी गति, स्थिति और कक्षा की मंत्रणा कर 
हिसाब लगाती है उस आँसू का 
जो गृहों की चाल के सारे गणित  
बिगाड़ कर रख देता हैं...!!

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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