Friday, June 30, 2023

ओढ़ चूनर घटा की कलाधर चला 
मेघ बरसे धरा हो गई पावनी 
बदले परिधान अपने जो परिवेश ने
आई पावस सुहानी ये मन भावनी

करके श्रृंगार बसुधा हुई मदभरी 
सज संवरकर दुल्हन बन गई पांखुरी
पत्ते पत्ते नये हो गये शाख के 
सरिता यौवन भरी लग रही कामनी

मोर मतवाले नर्तक हुए शान से
मेघ बजने लगे हैं मधुर तान से
झूले पेड़ो की डालों पे हिलने लगे 
गीत बालायें गातीं मधुर श्रावनी

गीत दादुर ये गाते मधुर कंठ से
आओ प्रियतम हमारे कहाँ हो छिपे 
आज मिलकर प्रणय गीत गायेंगे हम
नभ में चमकेगी पावस की जब दामनी

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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