मन के भीतर बहुत कुछ है
उजाले है अँधेरे हैं
कभी उजाले ने अँधेरे को तो
कभी अँधेरे उजालों को घेरे हैं।
कहीं कल्पनाओं के समतल मैदान हैं
कहीं यथार्थ के रेगिस्तान हैं
कहीं आवश्यकताओं के जंगल हैं
कहीं विचारों के जड़ जंगम हैं
तो कहीं असफलताओं के वीरान हैं।
आकांक्षाओं के ऊँचे ऊँचे पहाड़ हैं शिखर हैं
कहीं संतुष्टि के पठार तो कहीं असंतुष्टि के गाढ़े हैं
कहीं दुःखों का अगाध सिंधु कहीं पीड़ा की नदियाँ हैं
इस मन में यादें आती हैं गुदगुदाती हैं हँसाती हैं
खुशी भर जाती हैं मन को खुजलाती हैं
और कभी कभी पुरानी व्रीणा की पीणा उकसाती हैं
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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