चुप मैं रहूँ कभी कभी तुम को बताऊँ
झगड़ लूं तुम्हीं से तुम्हें फिर मनाऊं
ये बातें हमारी ये किस्से जो हिस्से
मैं रख कर सिरहाने इन्हें तकते जाऊं
वो आँखों की बातें वो भीनी सी खुशबू
भीगी सी जुल्फों में रेशम सा जादू
दुनिया मेरी तुम तुम्हें क्यूँ बताऊँ
झगड़ लूं तुम्हीं से तुम्हें फिर मनाऊं
अनकहा सा जाना पहचाना ये इश्क़
तुम ही से निभाऊं तुम ही संग निभाऊं
तुम्हारी ही राहों में खिलता रहूँ मैं
तुम्हें हर नज़र आकर मिलता रहूँ मैं
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment