Monday, September 11, 2023

क्या बहुत कठिन है, तुम्हारा मन समझना
तुम अक्सर उलझ जाती हो,मुझे सुलझाने में

बुन लेती हो खुद को,मेरे इर्द गिर्द
भुला देती हो,अपने सारे दुख दर्द

रिस्ते जख्मों के, अक्सर सी कर
अपमान का विष भी,चुपचाप पी कर

बहा कर आंसू ,रैन बिताना
उज्जवला बन, मेरा संसार जगमगाना

महकाती हो आंगन, खुद मुरझाकर
सींचते हो रिश्ते, खुद को मिटा कर

इच्छाओं का,गला घोंट कर
आत्म सम्मान को, चिता सौंप कर

घुटती हर पल,फिर भी जीती हो 
चाहती हो प्रेम के,सच्चे मोती

तुम्हें पढ़ना,नहीं जटिल पहेली
मान सम्मान से,समझ जाती हो जज़्बात
अपनत्व से बन जाती,हर बिगड़ी बात

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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