है घटा छाई गगन पर बादलों का जिस्म ले
दूर तक गहरी अंधेरी रात है तिलिस्म ले
मेघवन में मैं अकेला और कंटित रास्ते
ढूंढता हूं एक नशेमन चल मैं तेरे वास्ते
हैं लताएं वृक्ष हर्षित वृष्टि के अवदान से
कौंधती है बिजलियां बादलों के मान से
ऋतु का आगाज़ ये बारिश की है पहेलियां
बूंद गिर कर इस जमी से खेलती अठखेलियां
आओ मिलकर हम सहज इस दृश्य का आनंद लें
बादलों को उड़ते देखे मिट्टी की सोंधी गंध लें
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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