श्वेत पुष्पों से सजी
कोहरे की सुरमई चादर ओढ़
कोई नवोढ़ा आज मेरे घर के
बगीचे में आई है ,
सुदूर प्राची के क्षितिज से
सहमती, सकुचाती,
ठिठकती, झिझकती,
धीमे-धीमे दबे पाँव चलती
सुहानी भोर आज मेरे घर के
द्वार पर आई है !
ओस के नूपुरों की
रुनझुन पाजेब पहन
उषा सुन्दरी ने
बड़े सवेरे घर के प्रवेश द्वार पर
धीरे से दस्तक दी है ,
उसके उनींदे कमल नयनों ने
जैसे सुबह के सूर्य की
मुलायम ऊष्मा से कुसुमित
सारे सुरभित सुमनों की
मादक मदिरा पी ली है !
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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