जीवन का माधुर्य रचा है
सुगंध भरा है उपवन में
ये किसकी आहट ये किसका कलरव
जो आन बसा है निजमन में
अनुभव हो रहा हर साँस में
हृदय के हर स्पंदन में
नीरत-विरक्त मेरे भावों में
कौन हंसा चिर क्रन्दन में
क्या प्रतिफल है ये असंख्य आहों का
जो चमका है,मेघ प्रभंजन में
सूनी राहों पर साथ मिला है
कुछ जुड़ा है दीर्घ विखंडन में
सोचा था वर्षों मैं जिसको
जो रहे थे मेरे हर प्रण में
प्रकट हुआ है आज मुखरित हो
समर्पित होके समर्पण में
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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