कभी नैन देखता हूँ कभी नक्श देखता हूँ ,
तेरी शोख अदाएं तसल्ली बख़्श देखता हूँ..!
चाँद सी कशिश है ताजमहल सा जिस्म ,
झील सी गहरी आँखों में इश्क़ देखता हूँ...!
अंगारों से होंठ तेरे ज़ुल्फ़ घटा सावन की ,
हर तरफ वादियों मैं तेरी खुशबु देखता हूँ..!
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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