Wednesday, December 6, 2023

मैं पुरुष हूँ

मैं भी घुटता हूँ, पिसता हूँ टूटता हूँ, बिखरता हूँ
भीतर ही भीतर रो नही पाता कह नही पाता
पत्थर हो चुका तरस जाता हूँ पिघलने को

क्योंकि मैं पुरुष हूँ

मैं भी सताया जाता हूँ जला दिया जाता हूँ
उस दहेज की आग में जो कभी मांगा ही नही था
स्वाह कर दिया जाता हूं मेरे उस मान-सम्मान का
तिनका-तिनका कमाया था जिसे मैंने 
मगर आह नही भरसकता

क्योकि मैं पुरुष हूँ

मैं भी देता हूँ आहुति विवाह की अग्नि में अपने रिश्तों की 
हमेशा धकेल दिया जाता हूं 
रिश्तों का वजन बांध कर जिम्मेदारियों के उस कुँए में
जिसे भरा नही जा सकता मेरे अंत तक कभी

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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