Tuesday, January 16, 2024

बदन के जेवर न देखे हमने, सदा विचारों को देखते है
लोहार भारी पडा है जिनपे, हम उन सुनारों को देखते है

लिखी न जिसने कोई वसीयत, बुजुर्ग का उठ गया जनाजा
लहू के रिश्तों मे आज दिल पर खडी दिवारों को देखते है

बुलंदियो का जुनून होगा तो, हौसलों पर करो  भरोसा
है झौंपडे खुद गिरा के, छप्पर खडी मिनारों को देखते है 

लूटा के जां चल पडे अकेले, बनी तमाशा हमारी चाहत 
है इश्क कातिल कहे जमाना, फना हजारों को देखते है 

जो मुफलिसी मे हुये है पैदा, चिराग बनकर भी चमके कैसे 
नजर उठाकर वो बुझते दिपक, कभी सितारों को देखते है 

क्यूं रौशनी पर लगा है पहरा, छिपा लिया किसने आज दिनकर 
हुआ अंधेरा है वक्त कैसा, अजब नजारों को  देखते है

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

No comments:

Post a Comment