गुजरता हूँ मैं जब भी सुनसान राहों में
कहीं से आ जाती है कूँहू की आवाज,
हाँ रूक जाते हैं कदम मेरे
मैं निहारता हूँ उस आवाज की तरफ
यूँ लगता है तुमने पुकारा है कहीं से
पर कहीं दिखती तो नहीं तुम
हाँ पर मुझे तो उसमें भी सुनाई देती है
तुम्हारी ही आवाज हाँ वही तुम्हारी सुरीली आवाज
उस वक्त खो जाता हूँ उस आवाज में
दूर कहीं पुरानी बातों में
हाँ इन्हीं राहों पे साथ चलने की कसम खाई थी हमनें
एक दूसरे का हाथ थामें सफर पूरा करने की
फिर मैं अकेला क्यों अब इन राहों पर हूँ,
पता है इस आवाज से ही दिल को बहला लेता हूँ मैं
तुम ना सही तुम्हारी यादें तो है
सफर में मैं तन्हा तो नहीं
हाँ यह सफर अनंत का तुम्हारी यादों के साथ
तन्हा है पर सफ़र तन्हा नहीं...
~~~~सुनिल #शांडिल्य
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