प्रीत की रीत निभा न सको
तो प्रीत के गीत न गाओ सखी,
प्रीत में हित की सोच रखो
तो मीत को न भरमाओ सखी।
प्यार तो इक धधकता अंगार है,
हरदम मचलता रहता उर ज्वार है।
इस ज्वार का वार सह न सको,
तो सागर सन्निकट न जाओ सखी।
प्रीत की रीत निभा न सको
तो प्रीत के गीत न गाओ सखी।
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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