जिसे देखो उसी को
कुछ न कुछ शिकवा शिकायत है,
जमाना डूबा है इसमें
नहीं कोई रियायत है।
वो कहते भी नहीं है पहले
अपने दिल में रखते हैं,
मग़र कब कैसे करना है
ये अनबोली हिदायत है।
खुद ब खुद
कितनी उम्मीदें
लगा रखीं हैं लोगों ने,
हमे लगता है अक्सर
ज़िन्दगी उनकी रिवायत है।
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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