Friday, January 26, 2024

जीवन में अनेक हैं तृष्णाएँ।
तुम्हें मगर..
पाना नहीं चाहता तृष्णाओं सा।
क्या महसूस किया है तुमने भी..
मिलते ही.. खो जाती हैं सब तृष्णाएँ।
स्मृति पटल पर भी
धूमिल पड़ जाती है स्मृतियाँ उनकी।
तुम मिलना.. तो मिलना
मेरे बालों की सफेदी सी..
मेरे चेहरे की झुर्रियों सी..
मेरी बढ़ती उम्र के अनुभवों सी..
मेरे भीतर की संवेदनाओं सी..
क्योंकि पाकर तुम्हें 
होना चाहता हूँ मैं..
मनुष्य और अधिक।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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