अच्छा सुनो
आज साडी पहनने का मन नहीं तुम्हारा
तो मत पहनो जो मन हो वो पहन लो
ये भारी भरकम जेवर भी नहीं पहनने
तो किसने कहा उतार दो
तुम्हारी सादगी ही श्रंगार है
आज बालों को खुला छोडना है
हां तो, लहराने दो न इन्हें हवा में
चूडी भी नही पहननी तो मत पहनो
तुम्हारी हंसी की खनक ही बहुत है
बिन्दी नही लगानी तो मत लगाओ न यार
इतना क्यों सोचना दुनिया को क्या देखना
हर रीति रिवाज से दूर तुम सिर्फ
मेरी खुशी के लिये सोचो
कि तुम्हारी आंखों की चमक और
होंठो की खिलखिलाहट देखने
के लिये कबसे तरस रहा हूं!
अरे ! ये मैं नहीं ये वो कह रहा है
तुम्हारा मन जो आइने में बैठा
हर पल तुम्हें प्यार से निहारे जा रहा है
और एक तुम हो
कि हर बार उसे अनदेखा,
अनसुना किये जा रही हो !!
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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