Tuesday, March 12, 2024

अंतस का अंधेरा अमावस की रात से भी गहरा था
निकल न पाए चित्त, उस पर खूंखार यादों का पहरा था

खुले आसमान के नीचे कैद मैं अपनी ही उलझनों में
खुशियों का शोर था बाहर ,पर मैं खुद के अंदर ही ठहरा था।

न जाने ये रात कब शुरू हुई और कब खत्म होगी
बदलते पहर संग आदि मध्य ओर अंत होगी

अपने चांद का इंतज़ार भी नही है मुझको
जल जाऊंगा अगर चांदनी की बरसात होगी।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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