यूँ ही चला चल, रुकना नहीं है
गिरना और संभाला है खुद से
किसी से आशा न करना कहीं पे
उम्मीद में दिल टूटता बहुत है
गिरता और फिसलता बहुत है
यूँ ही चला चल नदियों के जैसा
रुकना नहीं है पर्वतों के डर से
आंधियों में राह खुद से तलासों
सागर से मिलने में चुनौतियां बहुत है
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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