Tuesday, June 18, 2024

कल-कल करती 
नदिया की धारा सी 
बहती है ज़िंदगी ।

कभी मुड़कर 
पीछे पलटकर नहीं 
आती है ज़िन्दगी ।

नित नव पथ 
वरण करती स्वयं
बढ़ती है ज़िंदगी ।

तट बंध बंधी
कूलों मे सिमटी
वह यहां सभी को
देती है ज़िंदगी।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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