मैं तुम्हारे साथ चलना चाहता हूँ।
तुझमें ही घुल के पिघलना चाहता हूँ।।
कबसे डूबा हूँ ग़मो की झील में मैं।
संग तेरे मैं उभरना चाहता हूँ।।
कबसे बिखरा हूँ जहां में इस तरह से।
तेरि बाहों में सिमटना चाहता हूँ।।
ज़िंदगी तेरे इशारों में चले हम।
अब कहीं रुक कर ठहरना चाहता हूँ।।
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment