मैं पतझड़ की अवहेलना कभी नहीं कर पाऊंगा,
बसंत ऋतु के आगमन पे ना मैं कभी इतराऊंगा
अगर पतझड़ ने पुराने पत्ते नहीं गिराए होते,
तो क्या बसंत ऋतु में, नए पत्तों का सृजन हो पाता ?
दुख-सुख की परिभाषाएं कुछ ऐसे ही बना करती है,
दुख के बाद की खुशियां अतुलनीय सी लगती है।
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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