चाँद छिपता रहा चाँदनी रात थी
बादलों की वो कोई ख़ुराफ़ात थी.
मौत ने आके घेरा हमें जिस जगह
ज़िन्दगी की वहीं से शुरूआत थी.
मौज़-ए-दरिया ने धोखा दिया पेशतर
वर्ना तूफ़ान क्या तेरी औक़ात थी.
बाद मुद्दत के आई फ़ना हो गई
यूँ ख़ुशी से अधूरी मुलाक़ात थी.
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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