Sunday, September 8, 2024

छंद लिखना चाह रहे थे, बंद में उलझ गये।
चेतना के बोल सारे, रेत से फिसल गये।।

भाव, भावना सभी, रित गईं जाने कहाँ।
और हम निष्पन्द से, अवसाद में उलझ गये।।

तुमने कही मैंने सुनी, मैंने कही तुमने सुनी।
बात बात में बढ़ी और, फासले निकल गये।।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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