Sunday, October 13, 2024
ढलती शाम सी जिंदगी है तुम बिन मेरी,
कुछ पल साथ दो तो यादों में उतर जाऊं।
मेहमान हूं बस कुछ ही दिनों का मैं तेरा,
साथ बैठो तो कुछ पल ही मैं संवर जाऊं।
मिलते है मुश्किलों से अरमान दिल के कभी,
अरमान है कि आज एक शाम ही ठहर जाऊं।
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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