Wednesday, October 16, 2024

धड़कती धड़कनें भी रहीं उदास कल रात।
झपकती पलकों में था इक क़यास कल रात।

सुलगते रहे सपने आँखों में भोर तलक,
थपथपाती रही खिड़की बरसात कल रात।

उनसे कल रात ना हो सकी  गुफ्तगूँ,
झरझराती रहीं बूंदें चुपचाप कल रात।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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