त्रिकुटी बीच बिंदु शोभित
ठगें से दो नयन!
उलझ रहे पिय नयन से
लज्जित होकर मौन!!
तुम जीवन अभिसार सखी
रूप अनूप सहचरी सी!!
पग कोमल कोमल हृदय
मुदित मन पिय घर चली!!
नयन मीन भौह अति सुंदर
जिसमें राजित पिय की मूरत!!
अधर सुधारस ऐसे पागे
मधुशाला की सुरा से लागे! !
~~~~ सुनील #शांडिल्य
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