Thursday, September 29, 2022

 खामोशी के समुंदर में छिपे दिल के अल्फाज होते है

कभी कभी हम किनारे के इतने पास होते हैं


तभी लहरों से फिर टकरा जाती है कश्ती

फिर हौसलों की ले के पतवार साथ होते हैं


यूं तो अपनी अपनी कश्ती के मुसाफिर हैं सब

पर बिखरते हैं जब दिल के जज्बात

तो आंसुओं के बादल एक साथ होते हैं


---- सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, September 28, 2022

 बिछड़ कर भी हम मिलेंगे देखना

फूल चमन में फिर खिलेंगे देखना


तन्हा तन्हा हम रहते हैं तो क्या

ख्वाबों में जरूर मिलेंगे देखना


भिगोती हैं तेरी यादों की बौछार

बारिश में एक साथ भीगेंगे देखना


दर्द नहीं सहा जाता जुदाई का

आसमां पर प्यार लिखेंगे देखना


---- सुनिल #शांडिल्य

Thursday, September 22, 2022

 ख्वाब सजाये नयन मे, झूले पे इतराय

गोरी को निज पिया की,यादें रही सताय


ऊँपर-नी़चे पैंग का अंग-अंग थिरकाय 

मानो रति को काम हित,रितु ये रही सजाय


करि सोलह सिंगार,सखी संग गोरी आई

अल्हडता हर अंग,उमंगित ली अगडाई


गावै गीत मल्हार ख्वाब के पंख लगाके

झूले पर इठलाय,मौज मस्ती सी छाई


---- सुनिल #शांडिल्य 

@everyone

Tuesday, September 20, 2022

 तेरा स्पर्श अभी भी रखा है

तुम मिलो तो छूकर बताऊँ तो

यह फूल और भी ख़िलते हैं


तेरी ख़ुश्बू अग़र छुपाऊँ तो

आते हैं तेरे ख़यालों के भंवरे


तेरी यादों को मेहकाऊं तो

रस में बस के सब तर हैं


मैं नीरस क़भी हो जाऊँ तो

तुम आना ले जाना अपना यह स्वास प्रिये

तेरा यह एहसास अग़र ना दे पाऊँ तो


---- सुनिल #शांडिल्य

@everyone

Sunday, September 18, 2022

 बिखरती जुल्फ की परछाईया मुझे दे दो,,

तुम अपनी शाम की तन्हाईया मुझे दे दो,,


खुमार-ए-हुस्न की अंगड़ाइयां मुझे दे दो,,

मैं तुमको याद करुं और तुम चली आओ,,


मोहब्बत की ये सच्चाइयां मुझे दे दो,,,

मैं डूब जाऊं तुम्हारी उदास आँखों मे,,

तुम अपने दर्द की गहराईयां मुझे दे दो....


---- सुनिल #शांडिल्य

Saturday, September 17, 2022

 सपने कुछ बहके बहके से

देखे तो हैं अभी अभी


रात गुजर गई भोर में किरणें 

फूटी तो हैं अभी अभी


बड़े दिनोंके बाद मिले और 

इठला इठला कर बोले


कह भी डालो अब तो मुझसे 

दिल में जो है अभी अभी


दिल कहने सुनने को आतुर 

कुछ तो मन की बात कहो


कहां चल दिए कुछ देर को बैठो

आए तो हैं अभी अभी


---- सुनिल #शांडिल्य 

@everyone

Friday, September 16, 2022

 रूह को भिगो कर

इक ज़िस्म तराशा है,


चाँद को फ़लक से ज़मीं पे उतारा है,

तुममें ही डूब जाती हर शाम सुबह होने को,


इन सितारों से भी आगे जहान तुम्हारा है,

ख्वाबों सी लगती है तुम्हारी हर अदा, 


गीतों में ढालकर, किस ने तेरा रुप निखारा है,

महक तेरे बदन की, जैसे चंदन की दुशाला है,


ये प्यास तेरी कभी ना बुझे, 

तुझे इबादत की तरह जन्नत से पुकारा है,


तेरी मिसाल ना हो सके कोई,

किसी संगतराश ने जैसे अपने हाथों से तराशा है...                                    


रूह को भिगो कर.....इक ज़िस्म तराशा है...


---- सुनिल #शांडिल्य

Wednesday, September 14, 2022

 धुआं धुआं सा मौसम मेरा धुंध कही पे छाई है 

तुम बिन मेरा जीवन क्या है एक अदद तन्हाई है 


दिल में पतझड़ का है मौसम ग़म ने झड़ी लगाई है

तुम बिन मेरा जीवन क्या है एक अदद तन्हाई है


दिन में बसते ख्वाब तेरे रातो ने आग लगाई है

जाने कैसे तूने दिल में अपनी जगह बनाई है


बीत गए हैं मौसम कितने फिर भी तू ना आई है

तुम बिन मेरा जीवन क्या है एक अदद तन्हाई है।।।


बरसो बीते चलते चलते राह अकेले पायी है 

राहों में है धुल जमी कैसी विरानी छाई है 


तुम बिन मेरा जीवन क्या है एक अदद तन्हाई है।।


---- सुनिल #शांडिल्य

Tuesday, September 13, 2022

 आसमा खुला रखो, चांद पे पहरा न हो

मैं ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ, तू हैरां न हो


जिसके दीदार से उड़ जाये चैंनो सुकून

कोई इतना खूबसूरत, चेहरा न हो


अगर डूबे तो निकलना मुश्किल हो जाये

आंखो का समुंदर इतना गहरा न हो


निकले तलाश में तो, मिल जाये मंजिल

शर्त ये हैं कि मुसाफ़िर ठहरा न हो


---- सुनिल #शांडिल्य

Monday, September 12, 2022

 भीगी भीगी फ़िज़ाओं में, 

बहकी बहकी हवाओं में, 


गुनगुनाती शामों में, 

बूंदों की बरसती लड़ियों में,

महकी फूलों की  कलियों में, 


धुले धुले  आसमान तले, 

हम_तुम मिले, 


गिले शिकवे सब बारिश में घुले, 

चाय के  प्याले  हाथ में लिए, 

ख्वाब नए जीवन के बुने.... 


---- सुनिल #शांडिल्य

Sunday, September 11, 2022

 तुम सुनाओ, हम बेजुबान हो जाते हैं

हसी फिजाओं में कद्रदान हो जाते हैं,


महक रही हो तुम इन फूलों की तरह

बगीचा तुम, हम गुलफाम हो जाते हैं।


चांद सी चमक रही हो धूप में भी तुम

चांद तुम, हम आफताब हो जाते हैं।


तुम नयनों से शबद मोहब्बत कहना

हम रुह-ऐ इश्क अल्फाज़ समझ लेंगे।


---- सुनिल #शांडिल्य

Friday, September 9, 2022

 ख़ता क्या है मेरी? बहारों से पूछो

जो गुलशन से मेरे ये रूठे हुए हैं।


वर्षों तक सींचा जिन्हें अपने खूं से

वो रिश्ते ही क्यों आज झूठे हुए हैं।


ना छेड़ो मुझे बिखर जाऊंगा वरना

मेरे दिल के तार ये टूटे हुए हैं।


घायल ना ज़िंदा रहेंगे जहां में

ख़ुदा आजकल हमसे रूठे हुए हैं


ना छेड़ो कोई की छलक जाएंगे हम...! 

यूँ भरे बैठे हैं हम गिलासों में पानी की तरह...!!


---- सुनिल #शांडिल्य 


@everyone

Thursday, September 8, 2022

 एक लम्हा ही सही

कभी सहलाओ तो सही


सूनी-सूनी रातों में 

कहीं मिलने आओ तो सही


वहीं.... जहां ओस की बूँदें

तुम्हारे कदम चूमती हों 


हवा मदहोश हो कर 

तुम्हारे ही आस-पास घूमती हो


हाँ वहीं 

पीपल की ठंडी छाँव में


मेरे मन के गाँव में 

जहाँ अक्सर तुम ख्वाबों में आती हो


---- सुनिल #शांडिल्य 

Wednesday, September 7, 2022

 पल पल कल की आस लिए, 

ये जीवन कटता है।

बढ़ती है बस उम्र,

मगर ये जीवन घटता है।।


पल पल की नदिया में,

सांसें बहती जाती हैं।

कल-कल खुशियों की चाहत में.

हर कल रहता है।।


कितने ही सपने से अपने,

अपने से सपने।

अपनेपन की आशा में,

हर स्वप्न फिसलता है।।


---- सुनिल #शांडिल्य


@everyone

Tuesday, September 6, 2022

 जब जब मौसम ले करवट

कहीं तुम भी करवट ना ले लेना


रंग बदलती है दुनियाँ

तुम भी ना यूँही खुद को बदल लेना


हर मौसम में बन कर सहारा

संग मेरे यूँही खड़े रहना


हर रोज़ दीप जलेंगे हर दिन होगी होली

साथ होंगे जब हम तुम हर रात होगी दीपावली


---- सुनिल #शांडिल्य

Monday, September 5, 2022

 काली ज़ुल्फ़ों से घिरा चेहरा

जैसे काले बादलों में पूर्णिमा का चाँद हो


होंठ सुर्ख थे कातिल की भूमिका में

नैनों ने साध रखे थे तीर और कमान


नाक में चमक रही थी ज़ालिम नथनी

दिल कर रहा था घायल उसका लश्कारा


चाल मोरनी सी, हिरनी लजा रही थी

मारे शर्म के दांतों तले तिनका दबा रही थी


---- सुनिल #शांडिल्य

Sunday, September 4, 2022

 चाँद का ख़्वाब उजालों की नज़र लगता है!

तू जिधर हो के गुज़र जाए ख़बर लगता है!!


उस की यादों ने उगा रक्खे हैं सूरज इतने!

शाम का वक़्त भी आए तो सहर लगता है!!


एक मंज़र पे ठहरने नहीं देती ये फ़ितरत!

उम्र भर आँख की क़िस्मत में सफ़र लगता है!!


---- सुनिल #शांडिल्य

Friday, September 2, 2022

 शायद लकीरों की क़िस्मत तुम्हीं हो।

ख्वाब हो तुम इक हकीकत तुम्हीं हो।


मेरी हर सुबह,हर इक शाम तुम हो,

आदत हो मेरी,जरूरत तुम्हीं हो।


लगता हैं जैसे तुम,मेरे सब गुनाहों की,

रियायत हो कोई और नसीहत तुम्हीं हो।


शामिल हो तुम ही,मेरी गलतियों में,

सहमत भी हो तुम,बगावत तुम्हीं हो।


---- सुनिल #शांडिल्य

Thursday, September 1, 2022

 मादकता के पाशमें मौसम हवा दिगंन्त

बौराये सब बाग बट हुये सिरफिरे सन्त


वैवाहिक पंड़ाल सी साजी धरा बहुरंग

पुष्प नाचते गा रहे सोहर बन्ना भृंग


आलिंगन मे बद्ध हो विटप लता मदहोश

ऊपर से बेशर्म से झोंके भरते जोश


गुनगुन दोपहरें हुयीं रातें हुयी मदंग

सहरें गुलदस्ता हुयीं चारो पहर उमंग


---- सुनिल #शांडिल्य